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Showing posts from May, 2013

वह तो खड़ा था अपनी मिटटी पर

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वह तो खड़ा था अपनी मिटटी पर  परछाई ही उसकी पार कर गयी वो सीमा  बहुत जख्म झेले उसने  मिटा दिया अस्तित्व, छीन ली उसकी साँसे  वह तो समझता था एक ही धरा  उसे क्या पता था कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए  बाँट दिया इस धरा को  कुछ अपने लिए, कुछ उनके लिए  वह तब भी समझा था एक ही धरा  अब भी समझता है एक ही मिट्टी  वह जी कर तो न बतला पाया  हाँ, मगर मर कर बतला गया  अपनी धरा को, उनकी धरा को  सब एक धरा के लाल हैं  सबने इसमें मिलना है मत बाटों अपनी माँ को  तुम भी सोना, हम भी सोयें  इस माँ के आँचल में  - कुमार रजनीश

रेवांत की गिनती शुरू

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तारों में सजके .. अपने प्रितम से देखो धरती चली मिलने ...

एक धुन छेड़ता हूँ मैं .. कुछ सुनने और सुनाने के लिये ..

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सूफी संगीत में डूबने की एक कोशिश

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