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Showing posts from January, 2014

तिरंगे के रंगो में देखा है -एक सपना

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तिरंगे के रंगो में देखा है -एक सपना आने वाला कल होगा, निर्भिक सब कुछ होगा अपना कच्ची धुप में खिलेंगे, खेलेंगे और खिलखिलायेंगे जिन खुशियों के लिए तरसती थी आँखें सब मिल-जुल बढ़ेंगे ऐसा कल हो अपना धर्म-जाति का नाम न लेंगे छोटे-बड़े में द्वेष न होंगे ऐसा देश हो अपना नेता-नीति की बात न होंगी मानव सेवा ही धर्म हो अपना बड़े-बूढ़े मार्गदर्शक हो अपने हँसता हो बचपन अपना पैसे के मोल न होंगे स्नेह-भाव हो पथिक अपना 'आसरा' की सोच है ऐसी सुन्दर सजता सपना तिरंगे के रंगो में देखा है -एक सपना

हिन्दुस्तान की बेटियाँ

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आज सुबह के अनुभव को आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ. दिल्ली मेट्रो ट्रेन में सुबह एक छोटे सुखद परिवार से आखें चार हुई. मन ही मन में बहुत सारी बातें भी हुई. इस परिवार के सदस्य थे - दो बेटियाँ और एक माँ ! एक छोटी बेटी जो अपने माँ के गोद में साड़ी के आंचल से ढंकी हुई थी और दूसरी बेटी कुछ ६-७ वर्ष की, एक ढोलक और एक लोहे के छल्ले के साथ खड़ी थी. उस बच्ची के आँख में इतनी चमक थी, जोश था, गजब का आत्मविश्वास था की बता नहीं सकता। चूँकि हम सभी खड़े थे और मेट्रो की रफ़्तार कुछ ज्यादा थी जिससे वह छोटी बच्ची कभी अपने माँ को डगमगाने से बचाती थी तो कभी अपनी रोती हुई छोटी बहन को चुप कराने में व्यस्त थी. वह अपने कुर्ता की जेब से ग्लूकोस बिस्कुट निकाल कर अपनी माँ को भी खिला रही थी और साथ में अपनी छोटी बहन को भी. नियति के इस रीत को देख कर मैं गद-गद हो रहा था. वाह रे हिन्दुस्तान की बेटियाँ तुम पर नाज़ है. जीवन ज्ञापन करने की कला सीखने के लिए हमें स्कूल, कॉलेज और बड़े बड़े यूनिवर्सिटी जाने की जरुरत नहीं, हमारा तो ज्ञानशाला हमारे बीच में ही उपलब्ध है सिर्फ आँखें खुली रखने की जरुरत है. जी हाँ, यह परिवार नित्य दि