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Showing posts from December, 2012

दामिनी तुम बहुत कुछ कह गयी इस नपुंसक संसार को।

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माँ अब दर्द सहा नहीं जाता  विदा लेती हूँ तेरी गोद से ममता की छाव से   इस नपुंसक संसार से  अपने आंसू बिखरने न देना  सब कुछ चुप-चाप सह लेना कुछ लोग मिलने आयेंगे  दुःख की घडी में,  सब अपना बताएँगे इसे देख पापा भी अपने अश्रु रोक न पायेंगे  उनकी ताकत तुम बन जाना  माँ अब दर्द सहा नहीं जाता  विदा लेती हूँ तेरी गोद से सब मेरी याद में  थोडा शोक मनाएंगे  फिर मेरी आप बीती एक दुर्घटना मान  दो-चार दिनों में भूल जायेंगे  कुछ ताने भी मारेंगे  मुझे आजादी देने का  ये परिणाम भी बताएँगे  पर तुम शर्मशार न होना  सब कुछ सह लेना  क्योंकि सहने की शक्ति  सिर्फ औरत में होती है  माँ अब दर्द सहा नहीं जाता  विदा लेती हूँ तेरी गोद से ममता की छाव से   इस नपुंसक संसार से शायद किसी दिन मेरे न होने का  फर्क कुछ महसूस हो  कहीं कोई इंसान जागे  इंसानियत की पहचान जागे  फिर से कोई हैवानियत का शिकार न हो फिर से किसी बहन -बेटी का 'बलात्कार' न हो  मैं इंसानियत की प्रेरणा बन जाऊं  तेरी लाडली बन नाम कमाऊ  माँ अब दर्द सहा नहीं जाता  विदा

उस 'दामिनी' के लिए सबको समर्पित - कुमार रजनीश

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मैंने यह चित्र दुःख में उकेरी है। यह तस्वीर उस 'दामिनी' के लिए सबको समर्पित - कुमार रजनीश रिश्ते भरोसे चाहत यकीन .. उन सब का दामन अब चाक है .. समझे थे हाथों में है जमीन .. मुट्ठी जो खोली बस ख़ाक है .. दिल में ये शोर है क्यों ? नाज़ुक यह डोर है क्यों ? 

जूठन को इकठ्ठा करते हुए उन नन्हे हाथो को.....

जूठन को इकठ्ठा करते हुए उन नन्हे हाथो को अपने पेट भरते देख कर दिल में एक खलिश-सी हो रही थी। उस गंदे रेल पटरियो के बीच बैठे छह - सात बच्चे अपने भूख को मिटाने में लगे थे। कल शाम नयी दिल्ली स्टेशन पर दो राजधानी ट्रेन के बचे-कुचे खाने के पैकेट को, सफाईकर्मियो (भलाई करते हुए) को उन बच्चो की तरफ फेंका था। हम देखकर भी कुछ न कर पाने की मजबूरी का क्या नाम देते? कोई मरने देता ना, किसी को भूख और प्यास से .. हम सबके दिल में खौफ ख़ुदा का ऐसा होता .. न जाने कितने बच्चे रोज़ इसी तरह के जीवन जीते होंगे और कहीं उन सजी महफ़िलो में न भूख लगने वालो के लिए खाना खज़ाना सा सजता होगा। उन बच्चों में कुछ ऐसे भी होंगे जिन्होंने सपने बुने होंगे की अपनी भी एक खूबसूरत दुनिया होगी जहाँ मेवे-पकवान होंगे ... हम भी कभी सजे दरबार के शहजादे होंगे। छोटी आँखें ख्वाब बड़े .. रास्ते में कब रात पड़े . चल अब घर को लौट चले .. फिर से न बरसात पड़े . -कुमार रजनीश

।।माँ तुम-सा कौन इस दुनिया में।।

मेरी एक टक निगाह उस दूर बैठी एक माँ को देख रही थी जो अपने बड़े बेटे के सिर पर हाथ का स्पर्श देते हुए अपनी ममता बरसा रही थी और ये भी देख रही की छोटा बेटा भी उसके फटे हुए आँचल में सिमटा रहे और चैन की नींद सोता रहे। दोनों बेटो के बीच प्यार एवं स्नेह का सामंजस्य बैठाना और साथ ही साथ अपने बीमार 'उनका' भी ख्याल एवं मान रखना, कोई माँ से ही सिख सकता है।  दुनिया की एकमात्र आधारभूत शिक्षा और उससे जुड़े पाठ्यक्रम, गुरु एवं शिष्य का सार, एक माँ के ही रूप में दिख सकता है। बड़ा ही सहज और सरल स्वभाव होता है प्यारी-सी माँ का! अपने अह्र्लाद्पूर्ण मुस्कान से, करूणा से, इस जग को जगाती एवं जीतती है। इसके मान, सम्मान में कुछ भी कह पाना बड़ा ही मुश्किल है और इस व्यवहारिक दुनिया में इसका पूरक ढूंढ पाना नामुमकिन है। दुनिया की हर माँ को मेरा नूतन नमन!  - कुमार रजनीश

Singapore is Here

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Singapore is Here- आज टाइम्स ऑफ़ इंडिया के चौथे पन्ने पर एक प्रॉपर्टी का ऐड छपा है, इसी का शीर्षक है। मैंने जैसे ही उस ऐड में छपे चित्र को देखा तो ऐसा प्रतीत हो रहा था की जैसे हमारी हरी-भरी धरती के एक हिस्से को मानव द्वारा निर्मित बड़े-बड़े मशीनो से खरोंचा जा रहा है। उसकी तकलीफ वैसी ही है जैसे हमारे शरीर में किसी गहरे घाव के लगने से होता है, बड़ा ही तकलीफ देह , पीड़ादायक! धरती के एक हिस्से को, जिसपर बहुत ऊँची-ऊँची इमारते बनी हुई हैं, उसे लोहे के पूलियों से उखाड़ा जा रहा है और उसे हमारे लिए भारत में लाये जाने की कोशिश की जा रही है। हरियाली, सम्पन्नता, शांति को बटोर कर आपकी-हमारी झोली में परोसने की जुगत में लगी है यह कंपनी और इस प्रॉपर्टी का ऐड। परन्तु क्या इसे दर्शाने का कोई और तरीका नहीं हो सकता था ? भारत की एक नामी-गिरामी निर्माण कंपनी का ऐड है यह और वो हमें ये दिखाने कि कोशिश कर रहा है की आपके और हमारे लिए दुनिया की एक खूबसूरत हिस्सा - सिंगापुर, जैसा ही, कुछ भारत में बसा रहे हैं, जिसमे आप अपने जिंदगी के हसीं सपने को साकार कर पायेंगे। मैं इस कंपनी की भावना की क़द्र करता

बनारस की पवित्र भूमि पर

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मैं दो दिन पहले बनारस अपने परिवार के एक सदस्य की शादी में गया हुआ था . हम लोग बनारस के अस्सी घाट के पास रुके थे। अस्सी घाट के बारे में कहा जाता है कि माँ दुर्गा ने जब शुम्भ-निशुम्भ राक्षस का अपने खडग से वध किया था तब उन्होंने अपने खडग को यही पर फेंका था और उसी के प्रभाव से अस्सी नदी का उदगम हुआ। बनारस के रंग में रंगने के बाद, मन ने कहा चलो कुछ लिखते हैं, शब्दों की बानगी बुनते हैं। प्रस्तुत है एक स्वरचित कविता : बनारस की पवित्र भूमि पर, घुमा, फिरा, देखा और समझा, बहुत कुछ अस्सी के घाट पर। घाट की अनगिनत सीढियों में, उस चूल्हे में, उसमें बनी सोंधी चाय में, घुमा, फिरा, देखा और समझा, बहुत कुछ अस्सी के घाट पर। गरमा गरम जलेबिओ में, खास्ते कचौरी और तीखी सब्जिओ में, गूंजती हुई शिव के मंत्रो में, घुमा, फिरा, देखा और समझा, बहुत कुछ अस्सी के घाट पर। श्रद्धा में, फूलों में, गंगा की धार में, धारा में बहती, प्रज्वलित दीपों में, घुमा, फिरा, देखा और समझा, बहुत कुछ अस्सी के घाट पर। अनिल, मनोज, अक्षय, और अन्य की हंसी फुहारों में, बारात में नाचती दोनों फिरंगियो में, नागिन की अठखेलिय