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Showing posts from December, 2013

नए साल के ग्रीटिंग्स कार्ड्स

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वह छूकर देखने और महसूस करने का आलम भी बड़ा रोचक होता था. जी हाँ, गुलाब और कई तरह के फूलों वालो से सुसज्जित नए साल के ग्रीटिंग्स कार्ड्स की बात कर रहा हूँ. हम लोगों का नव वर्ष मनाने का तरीका शायद सब का एक जैसा ही था. दिसंबर महीने के आखिरी दो हफ्तों में तरह तरह के रंग बिरंगे सीन-सीनेरियों वाले, दिल वाले, कबूतर और शांति के प्रतीक वाले, कुछ हाथ से बने सीसन्स कार्ड्स को खरीदने और डाक द्वारा भेजने में व्यस्त रहते थे. बड़े ही प्यार और स्नेह से रंग बिरंगी स्केच पेंस से कार्ड्स में सन् देश लिखा जाता था. बहुत लोग अपनी रचित कविता, गीत या शायरी भी लिख डालते थे. लिफ़ाफ़ा को कैमल ब्रांड के गोंद से चिपका या फिर पोस्ट ऑफिस के हलके नीले या हरे रंग के लई से चिपका, उसके ऊपर डाक टिकत को जीभ से गीला कर दे फटा-फट.… अब अंतिम काम सब लिफ़ाफ़े को अलग अलग पोस्ट बॉक्स में डाल नए साल की शुरुआत होती थी. पुरे साल में सबसे ज्यादा अगर कोई प्रिय लगता था तो वो थे डाकिया बाबु। अपनी साईकल की घंटी बजाई नहीं की सब के सब दरवाजे के बाहर। अरे ये ग्रीटिंग कार्ड मेरे होगा, अरे नहीं हटो ये मेरा है.… बस सब के मन में ख़ुशी की लहर. कुछ

ज़िन्दगी और मूँगफ़ली

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हमारी ज़िन्दगी और मूँगफ़ली में बहुत समानता है. मूँगफ़लीवाला अपने मूँगफ़ली को खूब अच्छी तरह से भुनता है. मूँगफ़ली करारी हो और सारे दाने अच्छे से भुन जाए इसके लिए अपना पूर्ण प्रयास करता है. अब, जब आप मूँगफ़ली को तोड़कर खाते हैं तो उसमे से ज्यादातर द ाने अच्छे और करारे होते हैं परन्तु कुछ-एक दाने कच्चे या फिर ज्यादा जले होते हैं. जबकि मूँगफ़ली बेचने वाला अपने समर्पित भाव से कर्म करता है. हमारा जीवन भी ठीक उसी प्रकार से है. हम अपने बच्चो को सही दिशा और दशा निर्देशित करते हैं. अपने कर्म को प्रधान बनाते हुए सकारात्मक शैली से उनके नियति का लेख लिखने की कोशिश करते हैं. फलस्वरूप हमारे बच्चे समाज के सच्चे मार्गदर्शक बनते हैं. परन्तु कुछ-एक कर्म और दायित्व के सन्मार्ग से विचलित हो असामाजिक तत्त्व के अधीन हो जाते हैं. जबकि आपने अपना सम्पूर्ण दिया है. जीवन जीने की कला सीखना बहुत जरूरी है और यह सिर्फ धन से प्राप्त नहीं हो सकता, यह मेरा मानना है. अतः फुर्सत के चंद लम्हे निकाल कर नमक और मिर्ची के साथ मूँगफ़ली खायें और जीवन का आनंद उठायें।