ज़िन्दगी और मूँगफ़ली

हमारी ज़िन्दगी और मूँगफ़ली में बहुत समानता है. मूँगफ़लीवाला अपने मूँगफ़ली को खूब अच्छी तरह से भुनता है. मूँगफ़ली करारी हो और सारे दाने अच्छे से भुन जाए इसके लिए अपना पूर्ण प्रयास करता है. अब, जब आप मूँगफ़ली को तोड़कर खाते हैं तो उसमे से ज्यादातर दाने अच्छे और करारे होते हैं परन्तु कुछ-एक दाने कच्चे या फिर ज्यादा जले होते हैं. जबकि मूँगफ़ली बेचने वाला अपने समर्पित भाव से कर्म करता है. हमारा जीवन भी ठीक उसी प्रकार से है. हम अपने बच्चो को सही दिशा और दशा निर्देशित करते हैं. अपने कर्म को प्रधान बनाते हुए सकारात्मक शैली से उनके नियति का लेख लिखने की कोशिश करते हैं. फलस्वरूप हमारे बच्चे समाज के सच्चे मार्गदर्शक बनते हैं. परन्तु कुछ-एक कर्म और दायित्व के सन्मार्ग से विचलित हो असामाजिक तत्त्व के अधीन हो जाते हैं. जबकि आपने अपना सम्पूर्ण दिया है. जीवन जीने की कला सीखना बहुत जरूरी है और यह सिर्फ धन से प्राप्त नहीं हो सकता, यह मेरा मानना है. अतः फुर्सत के चंद लम्हे निकाल कर नमक और मिर्ची के साथ मूँगफ़ली खायें और जीवन का आनंद उठायें।




Comments

Popular posts from this blog

रावण के दर्द को महसूस किया है.....

सैलाँ बनाम सैलून

एक एक टुकड़ा जोड़कर……