बचपन और मकर संक्रांति
जाड़े की कडकडाती सुबह के चार बजे बड़ो का चिल्लाते हुए उठाना की जल्दी उठो नहीं तो पापा गंगा जी ले जायेंगे नहाने के लिए। इतना सुन हम मनोज भैया के साथ फटाफट रजाई को बेमन त्यागते हुए सीधे खुले हुए आँगन में ब्रश आदि कर ठंढे पानी से 'कौवा- स्नान' (शार्ट- कट स्नान) कर अपने दांत किटकिटाते हुए, धुले हुए कपडे के ऊपर दो-चार स्वेटर डाल, मंदिर में पूजा करने चले जाते थे। घर के बड़े लोग गंगा जी में डुबकी लगा कर आते थे। इसी बीच माँ और बडकी भाभी आलू दम और दुसरे व्यंजन बनाने में भिड़ी रहती थी। चुडा- दही , तिल - लाई के इस पावन पर्व की शुरुआत हमारे यहाँ सबसे पहले ढुनमुन बाबा को बुलाकर प्रेम से चुडा-दही खिलाकर होता था। एक तरह का आदर था सत्कार था, स्नेह था उनका हमारे प्रति इसीलिए वो हमलोगों के आमंत्रण का इंतज़ार करते थे। उन्हें चुडा-दही में ज्यादा गुड (मीठा, भुर्रा) लेना पसंद था। जब उन्हें आलू दम की सब्जी तीखी लगती थी तब वे खाते-खाते धीमी आवाज में गाली दे देते थे, जिसे हम उनका आशीर्वाद समझ खुश हो लेते थे। उनको दक्षिणा दे, पैर छु कर, प्रणाम कर माँ-पापा विदा करते थे। फिर हम सब एक साथ बैठ कर चुडा-द...