बचपन और खिलौना


बचपन और खिलौना - कुमार रजनीश 
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खेलने की उम्र में, 
खिलौने हाथ में लिए, दौड़ता है वह.

हर आती जाती गाड़ियों से, लुक्का-छिप्पी खेलता,
खिलौनों को बेचने के लिए, दौड़ता है वह.

बन्दर-भालू और बाजे को टाँगे,
हरी बत्तियों के बीच, दौड़ता है वह.

हर गाड़ियों में बच्चो को ढूंढता,
उन्हें लुभाने की कोशिश में, दौड़ता है वह.

वक़्त कम है, लाल बत्ती होने वाली है,
कोई तो खरीदे खिलौने, इस आस में, दौड़ता है वह.

आठ की उम्र में, ज़िन्दगी के लिए,
बरबस, गिरता उठता, फिर संभल, दौड़ता है वह.

बिक जाये अगर कुछ खिलौने,
भूख मिट जाएगी, माँ भी कुछ खा लेगी,
चमकती आँखों से, फिर उम्मीदों के साथ, दौड़ता है वह.


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