हर बार मुझ से मेरे अंतरमन ने


हर बार मुझ से मेरे अंतरमन ने
बहुत ही विनय से, तन्मयता से पूछा है-
यह अभिलाषा कौन? कौन है बताना ज़रा !’

हर बार मुझ से मेरे दोस्तों ने
व्यंग्य से, कटाक्ष से, कुटिल संकेत से पूछा है-
यह अभिलाषा कौन है बताना ज़रा !’

हर बार मुझ से मेरे अपनों ने
कठोरता से, अप्रसन्नता से, रोष से पूछा है-
यह अभिलाषा कौन है बताना ज़रा !’

मैं तो आज तक कुछ नहीं बता पाया
तुम मेरे सचमुच कौन हो क्या परिचय हैं तुम्हारा !
फिर एक आवाज सी आती है और नयन छलक जाती है अंतर्मन से एक धूमिल सी तस्वीर नज़र आती है अरे ये तो मेरी 'आशा' है
यही मेरी अभिलाषा की परिभाषा है!


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