दीदी याद है तुम्हे ?


दीदी याद है तुम्हे ?

दीदी याद है तुम्हे ?
वह आँगन में मिट्टी से लोट-पोट कर खेलना?
वह टूटे हुए घड़े के टुकड़े को खाना?
माँ के आते ही, तुलसी चबूतरे के पीछे छुप जाना ?

दीदी याद है तुम्हे ?
सर्दियों के शाम में अखबार का ठोंगा बनाना?
ठोंगे में भर-भर कर वो भूंजा चबाना?
हरी मिर्च के तीखेपन से वो आँखों का रोना?

दीदी याद है तुम्हे ?
इया का सब कोठरियो में लालटेन दिखाना?
धीमी आवाज़ से तुलसी की पूजा?
वो देहरी पे दियों का जलाना?

दीदी याद है तुम्हे ?
अपनी पढाई और कान ऐठ कर सबको पढ़ाना?
माँ की शाबाशी और पीठ थपथपाना?
कम्बल में छिपाकर, पैरों का लड़ाना?

दीदी याद है तुम्हे ?
वो सोंधी-सी खुशबू, मिट्टी चूल्हे का खाना?
पीढ़े पर बैठकर, पंक्तिबद्ध हो, थाली सजाना?
वो खाने से पहले, कुछ मंत्रो का पढना?

दीदी याद है तुम्हे ?
वो सर्दी की रातें, पुआल का बिस्तर?
तोता-मैना की कहानी, वो इत्मीनान से सोना?
सुबह चार बजे उठना, फिर कुछ रट्टे लगाना ?

दीदी याद है तुम्हे वो सब बातें ?
चलो फिर से चंद लम्हों को वहीँ ले जाते हैं
फिर से बचपन के कुछ हसीन पल दुहराते हैं
दीदी, चलो कुछ लोरियां फिर से गुनगुनाते हैं

(शब्दार्थ : 1. भूंजा - मुरमुरे, मूंगफली दाने, चुडा (पोहा), प्याज़, अदरक, मिर्च और निम्बू को मिलाकर बनाया जाता है। 2. इया - दादी माँ। 3. पुआल - धान के सूखे घास। 4. ठोंगा - दोना )

- कुमार रजनीश

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