दामिनी तुम बहुत कुछ कह गयी इस नपुंसक संसार को।
माँ अब दर्द सहा नहीं जाता विदा लेती हूँ तेरी गोद से ममता की छाव से इस नपुंसक संसार से अपने आंसू बिखरने न देना सब कुछ चुप-चाप सह लेना कुछ लोग मिलने आयेंगे दुःख की घडी में, सब अपना बताएँगे इसे देख पापा भी अपने अश्रु रोक न पायेंगे उनकी ताकत तुम बन जाना माँ अब दर्द सहा नहीं जाता विदा लेती हूँ तेरी गोद से सब मेरी याद में थोडा शोक मनाएंगे फिर मेरी आप बीती एक दुर्घटना मान दो-चार दिनों में भूल जायेंगे कुछ ताने भी मारेंगे मुझे आजादी देने का ये परिणाम भी बताएँगे पर तुम शर्मशार न होना सब कुछ सह लेना क्योंकि सहने की शक्ति सिर्फ औरत में होती है माँ अब दर्द सहा नहीं जाता विदा लेती हूँ तेरी गोद से ममता की छाव से इस नपुंसक संसार से शायद किसी दिन मेरे न होने का फर्क कुछ महसूस हो कहीं कोई इंसान जागे इंसानियत की पहचान जागे फिर से कोई हैवानियत का शिकार न हो फिर...