जूठन को इकठ्ठा करते हुए उन नन्हे हाथो को.....
जूठन को इकठ्ठा करते हुए उन नन्हे हाथो को अपने पेट भरते देख कर दिल में एक खलिश-सी हो रही थी। उस गंदे रेल पटरियो के बीच बैठे छह - सात बच्चे अपने भूख को मिटाने में लगे थे। कल शाम नयी दिल्ली स्टेशन पर दो राजधानी ट्रेन के बचे-कुचे खाने के पैकेट को, सफाईकर्मियो (भलाई करते हुए) को उन बच्चो की तरफ फेंका था। हम देखकर भी कुछ न कर पाने की मजबूरी का क्या नाम देते?
कोई मरने देता ना, किसी को भूख और प्यास से ..
हम सबके दिल में खौफ ख़ुदा का ऐसा होता ..
न जाने कितने बच्चे रोज़ इसी तरह के जीवन जीते होंगे और कहीं उन सजी महफ़िलो में न भूख लगने वालो के लिए खाना खज़ाना सा सजता होगा। उन बच्चों में कुछ ऐसे भी होंगे जिन्होंने सपने बुने होंगे की अपनी भी एक खूबसूरत दुनिया होगी जहाँ मेवे-पकवान होंगे ... हम भी कभी सजे दरबार के शहजादे होंगे।
छोटी आँखें ख्वाब बड़े ..
रास्ते में कब रात पड़े .
चल अब घर को लौट चले ..
फिर से न बरसात पड़े .
-कुमार रजनीश
Comments
Post a Comment