।।माँ तुम-सा कौन इस दुनिया में।।


मेरी एक टक निगाह उस दूर बैठी एक माँ को देख रही थी जो अपने बड़े बेटे के सिर पर हाथ का स्पर्श देते हुए अपनी ममता बरसा रही थी और ये भी देख रही की छोटा बेटा भी उसके फटे हुए आँचल में सिमटा रहे और चैन की नींद सोता रहे। दोनों बेटो के बीच प्यार एवं स्नेह का सामंजस्य बैठाना और साथ ही साथ अपने बीमार 'उनका' भी ख्याल एवं मान रखना, कोई माँ से ही सिख सकता है। 

दुनिया की एकमात्र आधारभूत शिक्षा और उससे जुड़े पाठ्यक्रम, गुरु एवं शिष्य का सार, एक माँ के ही रूप में दिख सकता है। बड़ा ही सहज और सरल स्वभाव होता है प्यारी-सी माँ का! अपने अह्र्लाद्पूर्ण मुस्कान से, करूणा से, इस जग को जगाती एवं जीतती है। इसके मान, सम्मान में कुछ भी कह पाना बड़ा ही मुश्किल है और इस व्यवहारिक दुनिया में इसका पूरक ढूंढ पाना नामुमकिन है।

दुनिया की हर माँ को मेरा नूतन नमन! 

- कुमार रजनीश

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