बनारस की पवित्र भूमि पर


मैं दो दिन पहले बनारस अपने परिवार के एक सदस्य की शादी में गया हुआ था . हम लोग बनारस के अस्सी घाट के पास रुके थे। अस्सी घाट के बारे में कहा जाता है कि माँ दुर्गा ने जब शुम्भ-निशुम्भ राक्षस का अपने खडग से वध किया था तब उन्होंने अपने खडग को यही पर फेंका था और उसी के प्रभाव से अस्सी नदी का उदगम हुआ। बनारस के रंग में रंगने के बाद, मन ने कहा चलो कुछ लिखते हैं, शब्दों की बानगी बुनते हैं। प्रस्तुत है एक स्वरचित कविता :

बनारस की पवित्र भूमि पर,
घुमा, फिरा, देखा और समझा,
बहुत कुछ अस्सी के घाट पर।

घाट की अनगिनत सीढियों में,
उस चूल्हे में, उसमें बनी सोंधी चाय में,
घुमा, फिरा, देखा और समझा,
बहुत कुछ अस्सी के घाट पर।

गरमा गरम जलेबिओ में, खास्ते कचौरी और तीखी सब्जिओ में,
गूंजती हुई शिव के मंत्रो में,
घुमा, फिरा, देखा और समझा,
बहुत कुछ अस्सी के घाट पर।

श्रद्धा में, फूलों में, गंगा की धार में,
धारा में बहती, प्रज्वलित दीपों में,
घुमा, फिरा, देखा और समझा,
बहुत कुछ अस्सी के घाट पर।

अनिल, मनोज, अक्षय, और अन्य की हंसी फुहारों में,
बारात में नाचती दोनों फिरंगियो में, नागिन की अठखेलियो में,
घुमा, फिरा, देखा और समझा,
बहुत कुछ अस्सी के घाट पर।

बारातियो के स्वागत में, पान की गिलोरियो में,
शादी के फेरो में, वो प्यार भरी गालिओ में,
घुमा, फिरा, देखा और समझा,
बहुत कुछ अस्सी के घाट पर।

सबके 'सामान' की रक्षा में, रेवांत, समीक्षा और जागृति की मुस्कान में,
शशांक-भवानी को नयी जोड़ी में, गानों के दौर में, ट्रेन की रफ़्तार में,
घुमा, फिरा, देखा और समझा,
बहुत कुछ अस्सी के घाट पर।

फिर आने की लालसा में,
बनारसी अपनत्व की भावनाओ में,
घुमा, फिरा, देखा और समझा,
बहुत कुछ अस्सी के घाट पर।
- कुमार रजनीश



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