उस 'दामिनी' के लिए सबको समर्पित - कुमार रजनीश
मैंने यह चित्र दुःख में उकेरी है। यह तस्वीर उस 'दामिनी' के लिए सबको समर्पित - कुमार रजनीश
रिश्ते भरोसे चाहत यकीन ..
उन सब का दामन अब चाक है ..
समझे थे हाथों में है जमीन ..
मुट्ठी जो खोली बस ख़ाक है ..
दिल में ये शोर है क्यों ?
नाज़ुक यह डोर है क्यों ?
रिश्ते भरोसे चाहत यकीन ..
उन सब का दामन अब चाक है ..
समझे थे हाथों में है जमीन ..
मुट्ठी जो खोली बस ख़ाक है ..
दिल में ये शोर है क्यों ?
नाज़ुक यह डोर है क्यों ?
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