Singapore is Here

Singapore is Here- आज टाइम्स ऑफ़ इंडिया के चौथे पन्ने पर एक प्रॉपर्टी का ऐड छपा है, इसी का शीर्षक है।

मैंने जैसे ही उस ऐड में छपे चित्र को देखा तो ऐसा प्रतीत हो रहा था की जैसे हमारी हरी-भरी धरती के एक हिस्से को मानव द्वारा निर्मित बड़े-बड़े मशीनो से खरोंचा जा रहा है। उसकी तकलीफ वैसी ही है जैसे हमारे शरीर में किसी गहरे घाव के लगने से होता है, बड़ा ही तकलीफ देह , पीड़ादायक!

धरती के एक हिस्से को, जिसपर बहुत ऊँची-ऊँची इमारते बनी हुई हैं, उसे लोहे के पूलियों से उखाड़ा जा रहा है और उसे हमारे लिए भारत में लाये जाने की कोशिश की जा रही है। हरियाली, सम्पन्नता, शांति को बटोर कर आपकी-हमारी झोली में परोसने की जुगत में लगी है यह कंपनी और इस प्रॉपर्टी का ऐड। परन्तु क्या इसे दर्शाने का कोई और तरीका नहीं हो सकता था ?

भारत की एक नामी-गिरामी निर्माण कंपनी का ऐड है यह और वो हमें ये दिखाने कि कोशिश कर रहा है की आपके और हमारे लिए दुनिया की एक खूबसूरत हिस्सा - सिंगापुर, जैसा ही, कुछ भारत में बसा रहे हैं, जिसमे आप अपने जिंदगी के हसीं सपने को साकार कर पायेंगे। मैं इस कंपनी की भावना की क़द्र करता हूँ परन्तु इस ऐड के पर्सपेक्टिव को समझ पाने में असफल हूँ। मांफ कीजियेगा हो सकता है मेरा नज़रिया इस ऐड को देखने का गलत हो परन्तु पहले ही झलक में नाकारात्मक सोच हो जाये तो शायद कहीं न कहीं ऐड वर्ल्ड की क्रिएटिविटी में नासमझी है या फिर कह लें की भौतिकतावादी से ओत-प्रोत हो चला है - 'ऐड की दुनिया' क्योंकि जनाब मैं निराशावादी नहीं हूँ और मैं भी इसी हंसती-खेलती, सबकी लुभावनी धरती माँ का लाल हूँ। 
- कुमार रजनीश


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