पगला गया क्या वह ?
पगला गया क्या वह
सोता क्यों नहीं
जागा है कितनी रातों से
उन अनगिनत किस्से-कहानियों से
डर कर काँप रहा है
अंधकार से भरी कोठरी में
सुगबुगाहट फिर होती है
अपनी ही परछाइयो से
दूर भाग रहा है
पसीनो से लथपथ
दोनों पैरों को समेटे
चुकमुक एक कोने में बैठा
ज़िन्दगी से हारा
अपनी ज़िन्दगी को नांप रहा है
कितना सहमा और लाचार
आँखों से दर्द झाँक रहा है
मकड़ो के जालो-सा घिरा वह
अपनी नाकामियों को टटोलता
फिर अहम् से भरा
कुछ मन में तोल रहा है
कल की ही तो बात है
अपनी कड़ी मेहनत से
सबसे ऊँची मकाम हासिल की थी
एक रूतबा था
सफलता उसके कदम चूम रही थी
सबका लाडला बन
खूब देश-विदेश घुमा था
नौकरी देने वाला दाता
और वह उसका विधाता
बना हुआ था
सुना है कि एक नया
इसी के जैसा लाडला आ गया
अब वह उसका विधाता बन गया है
इसी शोक में कुछ बुझ गया है वह
सबने उसे इसकी हार बता
कुठाराघात किया है
उड़ता हुआ सपना
बुलबुलों की तरह फूट गया है
अब कोई उसका नहीं
परिवार भी पराया हो गया है
ज़िन्दगी को हार-जीत का खेल समझने वाला
इस खेल में अब हार गया है
बुझ गयी है चिराग
रौशनी दूर हो गयी उससे
सफलता और असफलता की
सांप-सीढ़ी का खेल
अब ख़त्म हो गया है
आवारा फिरता राहो में
किसी ने उसे पागल समझ
अस्पताल में डाल दिया है
तब से वह सोया नहीं
अपनी ही परछाइयो से
दूर भाग रहा है
तब से वह सोया नहीं
अपनी ही परछाइयो से
दूर भाग रहा है
- कुमार रजनीश
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