मैं बालक हूँ छोटा, कभी खेला, कभी मिटटी में लेटा
मैं बालक हूँ छोटा, कभी खेला, कभी मिटटी में लेटा.
तुम मुझेसे लिखने को कहते हो?
जब मैंने लिखा तो पढने को कहते हो.
जब पढ़ा तो समझने को कहते हो.
और जब समझा तो समझाने को कहते हो.
उफ्फ.. थक गया बड़ो की दरिंदगी से.
बचपन से ही बड़ो की सीख देने लगे..
बड़े तो तुम खुद न हो सके.. आज भी छिपा है तुम्हारे अन्दर वो बचपना.
मैं बालक हूँ छोटा, कभी खेला, कभी मिटटी में लेटा!
तुम मुझेसे लिखने को कहते हो?
जब मैंने लिखा तो पढने को कहते हो.
जब पढ़ा तो समझने को कहते हो.
और जब समझा तो समझाने को कहते हो.
उफ्फ.. थक गया बड़ो की दरिंदगी से.
बचपन से ही बड़ो की सीख देने लगे..
बड़े तो तुम खुद न हो सके.. आज भी छिपा है तुम्हारे अन्दर वो बचपना.
मैं बालक हूँ छोटा, कभी खेला, कभी मिटटी में लेटा!
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