बड़ो ने कहा है - मेरा भी घर होगा !


बड़ो ने कहा है मेरा भी घर होगा,
अपने सर पे भी एक छोटा-सा छत होगा.
छोटी-सी उम्र से ईट-पत्थरो को जोड़ा है मैंने,
माँ-बाबा के साथ चिलचिलाती दोपहर में,
छोटे भाई को ले मिटटी-गारे को ढ़ोया है मैंने.

आज बाबा की नसों में जान कुछ कम सी हो गयी है.
माँ भी कुछ झुंक-सी गयी है,
उम्र ता उम्र बढ़ बीमारी भी गयी है.
आँधियों ने चिरागों को बुझाया है,
इसलिए मैंने सितारों को अपने आँगन में सजाया है.

आज उम्र की इस मुकाम पर, मैं अकेला खड़ा हूँ.
सबका साथ छुट गया, शहर में वीरान पड़ा हूँ.
बचपन में शहर को फैलता देखा था,
आज न जाने क्यों इसको सिकुड़ता पाया हूँ.
क्या इन ईट-पत्थरों के शहर में अपने सपनो को पूरा कर पाउँगा?
बड़ो ने कहा है की मेरा भी घर होगा,
अपने सर पे भी एक छोटा- सा छत्त होगा.


Comments

Popular posts from this blog

रावण के दर्द को महसूस किया है.....

सैलाँ बनाम सैलून

एक एक टुकड़ा जोड़कर……