ऐ बेटा..जरा जल्दी आना !
ऐ सुनते हैं
जी.. बुढापी में सुनाइयो कम देने लगा है इनका. आज छोटका के जन्मदिन है. कुछ अच्छा
सा मिठाई ले आईएगा और का बोलते है उसको जो अंगरेजवन सब खाता है? अरे छोटका की माँ उसको केक कहते हैं..तुम
भी अब सेठिया गयी हो. हां...हां..ठीक है, उहे लेते आईएगा. छोटका के बहुत्ते निमन
(अच्छा) लगता है.
आज पिंटू का
अठारवा जन्मदिन है. घर में सबसे छोटा होने के कारण उसे सब प्यार से 'छोटका' बुलाते हैं. मास्टर राम लखन शर्मा अपने
सरकारी नौकरी से तीन साल पहले सेवानिवृत हो चुके हैं. दो बड़ी बेटी की शादी भी ठीक
ठाक घर में कर दिया. सुना था कि पैसे भी ज्यादा खर्च हुए. दहेज़ काफी माँगा गया
था. नौकरी में थे सो सब अच्छे से निपट गया. अब पिंटू ही है उस घर का दीया जो आगे
उस देहरी पर रौशन हुआ करेगा. अभी बारहवी कि परीक्षा पास की है और बिहार रेजिमेंट सेंटर में सेना में बहाली में नंबर भी आ
गया है. सब लोग खुश हैं और हो भी क्यों नहीं ? मास्टर साहब ने सारी ज़िन्दगी बहुत ही
गरीबी में गुजारी है. मस्टराइन भी कुछ सिलाई - बुनाई का काम कर घर का खर्चा चलाती
हैं. अब बेटा बड़ा हो गया और वही तो है जो अब अपने माँ - पिता जी का ख्याल रखेगा.
पिंटू सुबह
ही नहा-धो कर अपने दोस्त के साथ डॉक्टर साहब के पास 'मेडिकल-सर्टिफिकेट' लाने चला गया. सेना के बहाली में इसकी
जरूरत पड़ेगी. पंद्रह दिन बाद उसको बिहार रेजिमेंट सेंटर, दानापुर कैंट, पटना जाना है. मन ही मन बहुत उत्साहित और
प्रफुल्लित है क्योंकि उसे बचपन से ही सेना में भर्ती होने की इच्छा थी. शाहपुर
गाँव से वो और उसका दोस्त श्याम, दोनों
साईकिल पर सवार, पगडंडियों
पर उछालते-डगमगाते डॉक्टर साहब के घर जा रहे थे.
इधर माँ
सुबह से ही मिटटी के चूल्हे पर तरह तरह के खाना बना रही थी. छोटका को पिट्ठा (चावल
के आटे और दाल से बना बिहारी व्यंजन) बहुत पसंद था और उसके साथ हरी मिर्च और
पुदीने की चटनी. मास्टर साहब को 'आलू दम' की सब्जी और खस्ता कचौरी. माँ भी गजब
होती है. छोटका की माँ भी सब का ख्याल
और पसंद को देखते हुए ही तैयारी कर रही थी. माँ सबकी खुशियों में ही अपनी ख़ुशी
ढूंढ लेती है. बहुत्ते सरक रहा है...का छौक रही हो?? मास्टर जी ने चिल्लाते हुए कहा. तुम भी न
अपना तबियत ख़राब कर लेना आ फिर बोलना की जरा बैद जी को देखा दीजिये...समझे में
नहीं आता है औरतन के बुद्धि... मास्टर जी ने धीरे से बुदबुदाया. छोटका की
माँ भी उधर आँगन से कुछ ऐसे जवाब दिया - कहाँ कुच्छो कर रहे हैं ..आप भी न ! चाउर
पड़ा हुआ था तो सोचे की छोटका के लिए पिट्ठा बना देते हैं .. बहुत्ते पसंद से खाता
है. अब केतने दिन हमनी के साथ रहेगा... सब छोड़ के देस के लिए काम करना है उसको, मेडल छाती पे लटका , हम सब के नाम रौसन करेगा हमरा छोटका. माँ
बोलते बोलते अपने अश्रु को, मास्टरजी से
छुपाते हुए, साड़ी के
आँचल से पोछ रही थी. चूल्हे की धुएं के कारण बीच बीच में ख़ास रही थी. माँ बहुत ही
कोमल होती है... और उसकी सरलता हर कार्य में झलक जाता है. अब वो खाना बनाते
बनाते , अपने बेटे
कि शादी की भी सपने देख रही है. धीरे धीरे से वो कुछ इस तरह गुनगुना रही है
-"मोरे बबुआ को नज़रियों न लागे". यह एक प्रचलित विवाह गीत के कुछ
अंश हैं. माँ खुश भी हो रही हैं, रो भी रही
है... माँ की ममत्व शायद यही है. छोटका की माँ आज ये देख कर हैरान है की मास्टर
साहब भी अच्छे मिजाज़ में हैं. सबका मानना था की मास्टर जी थोडा कंजूस हैं.
परन्तु कंजूसी को छोड़, उन्होंने आज
अपने छोटका के लिए उसके पसंद का केक भी लाया और एक चेक वाला बुशर्ट भी. बहुत दिनों
पर घर का माहौल एक पर्व की तरह लग रहा था. भगवान् भी आज अपने छोटे से लकड़ी के
मंदिर में खुश दिख रहे थे. दिया और बाती से रौशन हो रहा था इष्ट देवता का मंदिर.
उड्हुल के फुल से सजा था दरबार.
शाम के साढ़े
पांच बजने वाले थे. छोटका के माँ - पिता जी आँगन में खाट पर बैठे छोटका कि बचपन की
बातें कर रहे थे. छोटका जब कभी स्कूल से जल्दी घर आ जाता था और मास्टर साहब गुस्सा
हो, पिटाई करने
के दौड़ते थे तब छोटका कैसे भाग के माँ के पीछे जा अपने को आंचल में छुपा लेता था.
समय की इस लम्बी दौड़
को याद कर दोनों मास्टर-मस्टराइन भावुक हो रहे थे तभी अचानक आँगन में दौड़ता
हुआ श्याम आया और दरवाजे की चौखट पे सर रख हाफ्ने लगा. श्याम को घबराया देख छोटका
के पिता जी ने उसके पास जा पूछा "का हुआ रे श्यामुआ? ..काहे हांफ रहा हैं? छोटका कहाँ है बउया? कोई इसन वैसन बात तो नहीं है न ? तब तक छोटका की माँ भी एक ग्लास पानी ले
श्याम के पास आ पहुंची. ले बउवा पानी पी लो . छोटका कहाँ है रे ? आ तुम लोग इतना देरी से कहाँ था? श्याम पानी पी कर सिर्फ इतना ही कह पाया
की छोटका का एक्सिडेंट हो गया है और उ स्वास्थ्य घर में एडमिट है. इतना सुनना था
कि दोनों श्याम के साथ स्वास्थ्य घर की ओर भागे. वहां देखा तो पाया कि एक बेंच पर सफ़ेद चादर में कोई लिपटा हुआ है.
डॉक्टर ने बताया कि पिंटू अब नहीं रहा. चारो तरफ मौन छा गया. श्याम ने बताया कि
कैसे एक ट्रक वाले ने इनके साइकिल को रौंदते हुए तेजी से लिकला था. श्याम पीछे
बैठा था इसलिए कूद कर बच गया परन्तु छोटका ...... . सुबह पिंटू के जाने के वक्त
माँ ने इतना कहा था की शाम को पूजा है - ऐ बेटा..जरा जल्दी आना.
छोटका की
माँ बस यही दोहरा रही थी - ऐ बेटा..जरा जल्दी आना...ऐ बेटा..जरा जल्दी आना...ऐ
बेटा..जरा जल्दी आना!
Comments
Post a Comment