तुम्हारे ही गुण से ...
तुम्हारे ही गुण से ...
तुम्हारे ही दोष से ...
सिखा है मैंने बहुत कुछ।
तुम संग,
जिंदगी की अंगड़ाइयों में ...
धुप और छाव में ...
सिखा है मैंने बहुत कुछ।
कमज़ोर कड़ियों में ...
हमारे मजबूत बन्धनों में ..
सिखा है मैंने बहुत कुछ।
कभी रोते हुए पलों में ...
संग गुनगुनाते हुए छणो में ...
सिखा है मैंने बहुत कुछ।
ऐसे ही कट जाये खूबसूरती से लम्हे ...
गर साथ हो, हर दम तुम्हारा ...
यही 'आसरा' हो हमारा-तुम्हारा।
Comments
Post a Comment