गर कभी अकेला महसुस करो
गर कभी अकेला महसुस करो
आ जाना बेहिचक
आज भी बैठा हूँ तेरे इन्तजार में
संग बैठ पियेंगे चाय
वही टूटी लकड़ी के तख़्त पर
आ जाना बेहिचक
आज भी बैठा हूँ तेरे इन्तजार में
संग बैठ पियेंगे चाय
वही टूटी लकड़ी के तख़्त पर
जहाँ कभी बैठ घंटो बिताते थे
भविष्य की किताबो की पन्नो का पलटना
गुदगुदाती थी हसीं लम्हे
गर कभी अकेला महसुस करो
आ जाना बेहिचक
आज भी बैठा हूँ तेरे इन्तजार में
बहुत कुछ बदला है समय के सयाही ने
कभी ज़मीं को आसमां तो
कभी आसमां को ज़मीं पे उतरते देखा है
दिल ने भी पत्थर सा एहसास किया है
क्योंकि कभी चूड़ियों को हाथो में खनकता
तो कभी टूटता पाया है
गर कभी अकेला महसुस करो
आ जाना बेहिचक
आज भी बैठा हूँ तेरे इन्तजार में
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